चोटी की पकड़–72
तो वे पहुँच गए।"
"कितने लिखे हैं? बताइए, नहीं तो हमें पकड़वाना पड़ेगा।"
"दो लाख तेरह हजार। जमादार, बहुत नाजुक मामला है। भेद न खुले। तुम्हें भी मिलेगा।"
"आगेवाली लीपापोती भी हमें मालूम होनी चाहिए। रुपया रखा कहाँ है, पूछ लीजिएगा, नहीं तो हम पुछवाएँगे।
कल हुजूर इसी वक्त ख़जाने में तशरीफ ले आने की मिहरबानी करें, नहीं तो रा--के पास मामला दायर होगा।
खूब ख़याल रहे (बीजक दिखाकर) इसका हाल किसी से कहिएगा तो बचिएगा नहीं। हमीं-आप तक इसका भेद है।"
"यह तै रहा। लेकिन तुम भी इसका जिक्र न करना।"
"हुजूर का मामला, जिक्र किससे किया जाएगा?"
जमादार राजा को संबोधन कर रहे थे, खोदाबख्श अपने को समझते थे। सलाम करके जमादार वापस आए, ख़ज़ानची आगे बढ़े।
पीपल के चबतूरे पर मुन्ना बैठी थी। देखकर मुसकराती हुई सामने आई। "कितनी है?" होंठ रंगकर पूछा।
"पाँच लाख।" खजानची ने छूटते ही कहा।
मुन्ना ने अंक मन में दोहराए।
"तो जल्द बिल तैयार हो जाना चाहिए। राजा साहब के दस्तखत बनाकर एकाउंटेंट के पास पहुँचा दिया जाना चाहिए।"
खजानची मन में कुढ़ा। सोचा, इस बेवकूफ़ को कौन समझाये, दो-दो, ढाई-ढाई लाख रुपए, ज्यादा रुपए होने पर छिपा रखने के सिवा, सीधे रास्ते से हज्म नहीं किए जा सकते।
वे राजा की निगाह पर आएँगे। बिल जाली बना लिया जा सकता है, पर खर्च का मेमो राजा की नजर से गुज़रेगा।
इम्प्रेस्ट का रुपया एक साथ मेमो बनकर निकलता है घर के खर्च के लिए। उससे हज़ार-पाँच सौ साल-छः महीने में निकाल लिया जा सकता है।
उसके बिल सही होकर एकाउंटेंट के पास भेजे जाते हैं तो कैश-लेजर कर लिया जाता है, उसका अलग से मेमो में उल्लेख नहीं आता।